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दीवाली पर लक्ष्मी पूजा क्यों की जाती है?

Diwali 2023 : दीवाली का पर्व आदि काल से मनाया जाता रहा है। इसे संसार में खुशी का प्रतीक माना गया है। दीपावली के दिन अन्य कई इतिहास भी जुड़े है। जैसे भगवान् श्री कृष्ण इसी दिन शरीर मुक्त हुए थे। जैन मत के अनुसार अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर, महर्षि दयानंद सरस्वती ने दीपावली के दिन ही निर्वाण प्राप्त किया।

लेकिन हिन्दुओं का मत है कि दीपावली के दिन ही श्रीराम विजयी होकर अयोध्या (Ayodhya) लौटे थे। उनकी खुशी में घी के दीपक जलाए गए और खुशियां मनाई गई। दोस्तो अगर राम-सीता और लक्ष्मण की खुशी में दीपावली (Diwali) मनाई जाती है

तो इस दिन राम की पूजा क्यों नहीं की जाती। सिर्फ लक्ष्मी पुत्र गणेश, विष्णु पत्नी लक्ष्मी ओर सरस्वती का ही पूजन क्यों किया जाता है।

मान्यता है कि इस महीने में व्रत, स्नान और दान करने से तमाम तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। कार्तिक माह को बहुत ही पवित्र माना जाता है। कार्तिक माह में पूजा तथा व्रत करने से तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

लेकिन इस महीने में दीवाली (Diwali 2023 Lakshmi Puja) पर लक्ष्मी जी की पूजा क्यों कि जाती है। क्या आपने कभी विचार किया है इस बारे में। खैर कोई नही, इस पोस्ट को आखिर तक पूरा पढ़ने के बाद आज आपके सभी सवालों के जवाब आपको मिल जाएंगे।

Diwali 2023 : दीवाली पर लक्ष्मी पूजा क्यों की जाती है?

हम सब जानते है कि मां लक्ष्मी (Lakshmi Pooja) धन की देवी हैं। मां लक्ष्मी की कृपा से ही ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है। कार्तिक अमावस्या की पावन तिथि पर धन की देवी को प्रसन्न करके समृद्धि ओर खुशहाली का आशीर्वाद लिया जाता है। दीपावली (Diwali Festival) से पहले आनेवाले शरद पूर्णिमा के त्योहार को मां लक्ष्मी के जन्मोत्सव की तरह मनाया जाता है। फिर दीपावली पर उनका पूजन कर धन-धान्य का वर लिया जाता है।

Diwali 2023 : लक्ष्मी पूजा का धार्मिक विश्वास क्या है?

हिन्दू धार्मिक रीति के अनुसार, मां लक्ष्मी की पूजा का मुख्य दिन शरद पूर्णिमा ही है जबकि दीपावली के दिन मां काली की पूजा मुख्य होनी चाहिए। इसका कारण यह है कि अमावस्या की रात मां कालरात्रि की रात होती है जबकि जो शरद पूर्णिमा की रात होती हैDiwali Pooja

वह धवल रात होती है। इसके साथ ही लक्ष्मी जी का प्राकट्य दिवस भी होता है। शरद पूर्णिमा के दिन ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुईं थी। इसके पीछे हमारे पुराणों में एक कथा प्रचलित है।

लक्ष्मी जी के प्रकट होने की कथा क्या है :

आइए हम आपको विस्तार से बताते है लक्ष्मी जी की पूजा के बारे में। पुराणों के अनुसार ये युगो पुरानी बात है जब समुद्रमंथन नही हुआ था। उस समय देवता और राक्षसों के बीच आए दिन किसी ना किसी वजह से युद्ध होते रहते थे।

कभी देवता राक्षसों पर भारी पड़ते तो कभी राक्षस देवताओं पर। एक बार देवता राक्षसों पर भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण राक्षस उनसे बचने के लिये पाताल लोक में भागकर छिप गए।

राक्षस जानते थे कि वे इतने शक्तिशाली नही कि देवताओं से अब ओर लड़ सकें। देवताओं पर महालक्ष्मी अपनी कृपा की बारिश कर रही थी। मां लक्ष्मी अपने 8 रूपों के साथ इंद्रलोक में थी। जिसके कारण देवताओं में अंहकार कुटकुट कर भर गया था।

दुर्वासा ऋषि

एक दिन दुर्वासा ऋषि समामन की माला पहनकर विचरण करते हुऐ स्वर्ग लोक की तरफ जा रहे थे। रास्ते में इंद्रदेव अपने ऐरावत हाथी के साथ आते हुए दिखाई दिए। इंद्र को देखकर दुर्वासा ऋषि प्रसन्न हुए और गले कि माला उतार कर इंद्र की ओर फेकी। लेकिन इंद्र अपनी मस्ती में मस्त थे। उन्होनें ऋषि को प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और वह ऐरावत के सिर में डाल गई।

हाथी को अपने सिर में कुछ होने का आभास हुआ और उसने तुंरत सिर हिला दिया था। सर हिलाते ही माला जमीन पर गिर गई और पैरों से कुचली गई। यह देखकर दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए। दुर्वासा ऋषि ने इंद्र को श्राप देते हुए कहा कि हे इंद्र – तुम जिसके अंहकार में हो,

वह तेरे पास से तुरंत पाताललोक चली जाएगी। ओर श्राप के कारण लक्ष्मी स्वर्गलोक छोड़कर पाताल लोक चली गई। लक्ष्मी के चले जाने से इंद्र व अन्य देवता कमजोर हो गए। राक्षसों ने माता लक्ष्मी को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। राक्षस बलशाली हो गए और इंद्रलोक का सिंहासन पाने की फिराक में जुगत भिड़ाने लगे।

उधर लक्ष्मी के जाने के बाद में इन्द्र देवगुरु बृहस्पति और अन्य देवाताओं के साथ ब्रह्माजी के पास पहुंचे। ब्रह्म जी ने देवताओं की मदद के लिये ओर लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए समुद्र मंथन करने की युक्ति बताई।

समुंदरमंथन

समुद्र मंथन के लिये देवता ओर दानवों को एक साथ मिलकर प्रयास करने की बात तय हुई। देवताओं और असुरों के बीच मेंं समुद्र मंथन हुआ ओर हजारों साल तक चला। हजारों साल चले इस मंथन में एक दिन महालक्ष्मी निकली।

उस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। लक्ष्मी को पाकर देवता पक्ष एक बार फिर से बलशाली हो गए। माता लक्ष्मी का समुद्र मंथन से आगमन हो रहा था उस समय सभी देवता हाथ जोड़कर आराधना कर रहे थे। भगवान विष्णु भी उनकी आराधना कर रहे थे।

इसी कारण कार्तिक आमावस्या के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही दीये जलाकर रोशनी की जाती है। इसके साथ ही लक्ष्मी के मय में कोई गलती न कर दें, इसलिए सरस्वती और गणेश जी की पूजा भी साथ मे की जाती है।

तो दोस्तो इस पोस्ट में आपने जाना कि दीवाली पर लक्ष्मी पूजा क्यों कि जाती है। आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी ये हमें कमेंट में जरूर बताना। इस पोस्ट को सोशल मीडिया के माध्यम से अपने रिलेटिव्स को जरूर भेजें। धन्यवाद

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Manoj Kumar

हरियाणा का रहने वाला हूँ और शुरू से ही लिखने का बड़ा शौख रहा है। नई नई चीजों के बारे में जानकारी लेना और इंटरनेट का कीड़ा बनना काफी पसंद है।

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