Maharana Pratap का जन्म। माता पिता। राज्य की जानकारी
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इस वेबसाइट पर आपको Maharana Pratap से जुडी सभी जानकारियां मिलेगी। (Maharana Pratap History) पूरी जानकारी हिंदी भाषा में है और सरल शब्दों में लिखी हुई है। इस पेज में आपको महाराणा प्रताप के जन्म से लेकर उनके पालन पोषण , उनकी वीरता के किस्से , उनके द्वारा जीते गए युद्ध और अन्य सभी घटनाओ का वर्णन मिलेगा।
महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया राजस्थान के उदयपुर में मेवाड़ राजवंश के शासक थे। उनकी वीरता के चर्चे तो आपने सुने ही होने। उनकी और मुग़ल बादशाह की टक्कर के बारे में भी जानते होंगे। महाराणा प्रताप ने कभी भी मुग़ल बादशाह अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की। और लम्बे समय तक संघर्ष किया और कई बार हुए युद्ध में मुगलो को हार का सामना भी करना पड़ा था।
महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap Ka Itihaas)
Maharana Pratap की गिनती इतिहास के उन महान शूरवीरो में होती है जिनका नाम आज भी युवाओ को प्रेरित करता है। और उनका नाम सर्वणिम अक्षरों में लिखा जाता है। उनका नाम और उनकी वीरता आज भी इतिहास के पन्नो में अमर है। महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह जलालुदीन अकबर के बिच बहुत संघर्ष हुआ लेकिन महाराणा प्रताप ने कभी भी उसकी गुलामी स्वीकार नहीं की और हमेशा सर उठाकर जवाब देते रहे। अकबर के दरबार में से कई शांति दूत भेजे गए महाराणा प्रताप के पास जैसे की जलाल खान , मानसिंह, भगवन दास , टोडरमल इतियादी। लेकिन महाराणा प्रताप को अपनी मातृभूमि से बहुत प्यार था और उन्होंने अकबर के साथ कभी भी संधि नहीं की और उनके हर ऑफर को ठुकरा दिय।
महाराणा प्रताप का जन्म कहा हुआ ?
Maharana Pratap Ka Janm राजस्थान के कुम्भलगढ़ के राजघराने में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था। और उनकी माता का नाम जयवंता बाई था। लेकिन एक अंग्रेज लेखक के अनुसार उनका जन्म मेवाड़ के कुम्भलगढ़ में बताया गया है। और एक अन्य लेखक और इतिहासकार के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली राजवंश के राजमहलों में हुआ। लेकिन इतिहास में उनका जन्म कुम्भलगढ़ जो वर्तमान राजस्थान में है उसको ज्यादा मान्यता दी जाती रही है। महाराणा प्रताप के दो भाई और और दो बहने भी थी।
राणा उदय सिंह के एक पुत्र और था जो उसकी दूसरी रानी धीरबाई का पुत्र था और रानी धीर बाई उसको राजा के रूप में देखना चाहती थी। और उसका नाम था जगमाल। लेकिन राणा उदय सिंह प्रताप को उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे इससे नाराज होकर जगमाल राणा उदय सिंह के दुश्मन के खेमे में चला जाता है यानि की अकबर के खेमे में। और इसके बाद महाराणा प्रताप का राज्य अभिषेक हुआ। उनको अठाइएस फरवरी पंद्रह सो बहेतर में राजा बनाया गया था। लेकिन इसके बाद पूर्ण रूप से उनको 1572 में दोबारा राज्याभिषेक करके राजा बनाया गया। और उस समय जोधपुर के महाराज चन्द्रसेन भी वहा मौजूद थे। प्रताप ने अपने जीवनकाल में कुल 11 विवाह किये थे
महाराणा प्रताप की रानियों के नाम और उनके पुत्र
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Maharana Pratap के जीवन के रोचक तथ्य
मुग़ल बादशाह अकबर बिना युद्ध किये ही महाराणा प्रताप को जितना चाहता था। इसके लिए उसने अपने चार राजदूतों को शांतिदूत बनाकर महाराणा के पास भेजा था। सबसे पहले अकबर ने जलाल खान को भेजा था इसके बाद भगवान दास, मानसिंह और राजा टोडरमल को भेजा गया था लेकिन महाराणा प्रताप ने सबकी ये शांतिवार्ता ठुकरा दी थी और अकबर की गुलामी करना स्वीकार नहीं किया। इसलिए हल्दी घाटी का वो भयानक युद्ध हुआ था।
Maharana Pratap Weapons
- Maharana Pratap Bhala Weight 81 किलो वजन का था
- उनके छाती का कवच 72 किलो का था.
- उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों (Maharana Pratap Sword)का वजन मिलाकर 208 किलो था
- महाराणा प्रताप भारत के सबसे मजबूत योद्धाओं में से एक थे
- जिनकी ऊंचाई ((Maharana Pratap Height in Feet) 7 फीट 5 इंच थी।
- वह 360 किलो वजन ढोता था
- जिसमें 80 किलो वजन का भाला
- (Maharana Pratap Talwar Weight) 208 किलो वजन की दो तलवारें
- उनका कवच लगभग 72 किलो भारी था।
- उनका खुद का वजन(Maharana Pratap Weight) 110 किलो से ज्यादा था
Maharana Pratap Horse Name
लोग महाराणा प्रताप की हार को नहीं बल्कि उनके आदमियों और उनके घोड़े के साहस और वफादारी को याद करते हैं। चेतक, क्योंकि उसके घोड़े का नाम था, मारवाड़ी घोड़ा और भी बहुत कुछ साबित हुआ। युद्ध के दौरान, एक हाथी के दांत ने चेतक के पिछले पैरों में से एक को तोड़ दिया और उसे अपंग कर दिया
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महाराणा प्रताप और हल्दी घाटी का युद्ध
हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून पंद्रह सौ छेतर में मुग़ल बादशाह अकबर और मेवाड़ के शासक Maharana Pratap के मध्य हुआ था। इस युद्ध में एक मुस्लिम सरदार भी मुगलो के खिलाफ लड़ा था जिसका नाम हाकिम खान सूरी था। महाराणा प्रताप मेवाड़ की सेना का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और उनकी सेना में सरदार भील थे। राजस्थान के गोगुन्दा नामक स्थान पर एक पहाड़ी की घाटी में हुआ
जिसे हल्दी घाटी के नाम से जाना जाता है। Maharana Pratap की सेना में लगभग तीन हजार घुड़सवार और चार सौ धनुर्धारी जो की भील जनजाति के थे। को मैदान में उतारा था। वही दूसरी और मुग़ल बादशाह ने सवंय युद्ध में ना जाकर आमेर के राजा मान सिंह को इसकी कमान सौंपी थी। अकबर की सेना में करीब दस हजार सैनिक थे। और इस युद्ध में बहुत से सैनिक मारे गए। ये युद्ध सिर्फ तीन घंटे चला था और इसमें प्रताप घायल हो गए थे। और उनके कुछ साथियो की मदद से वो पहाड़ियों में भागने में सफल हो गए थे।
गोगुन्दा और आसपास के क्षेत्र
और मुगलो ने गोगुन्दा और आसपास के क्षेत्रों में कब्ज़ा कर लिया था। वही मेवाड़ के लगभग सोलह सौ सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे। और अकबर की सेना में भी करीब चार हजार सैनिको की मौत हो गई थी। इसके बाद लंबे वक्त तक महाराणा प्रताप पहाड़ियों में छुप कर रहे और अकबर के हाथ नहीं आये और अकबर का ध्यान उनकी और से हट गया था। तो महाराणा प्रताप ने यही मौका देखकर फिर से अपनी सेना एकत्रित कर ली और फिर से मुगलो के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया।
इस बार युद्ध मानसिंह और आसफ खान के साथ हुआ था। जिसमे पुंजा भील और महाराणा प्रताप के पुत्रो ने भी भाग लिया था। इस युद्ध में फिर से मुग़ल सेना मेवाड़ की सेना पर भारी पड़ी लेकिन बाद में पासा ही पलट गया था और झालामान ने अपने प्राण गवांकर महाराणा प्रताप के प्राण बचाये थे। इस युद्ध में ग्वालियर के राजा भी अपने पुत्रो के साथ भाग ले रहे थे।
उनके पुत्र भी इस युद्ध में मारे गए थे। इस युद्ध में विजय किसी की भी नहीं हुई थी। ये युद्ध पहले युद्ध के मुकाबले जयादा समय चला था। पहला युद्ध तीन घंटे चला था और दूसरा युद्ध एक दिन चला था। इस युद्ध में राजपूतो ने मुग़ल सेना के होश ठिकाने लगा दिए थे। मुग़ल सेना के पास और कोई चारा नहीं बचा था पीछे हटने के सिवाय।
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छापा मार युद्ध प्रणाली
मुग़ल सेना संख्या में भी ज्यादा थी और उनके पास रसद भी अधिक थी इसलिए महाराणा प्रताप ने विचार किया की किसी नए तरीके से इस युद्ध को लड़ा जाये जिससे मुग़ल सेना को पीछे हटना पड़े और उनके हथियार भी लूट लिए जाये और उनका मनोबल भी टूट जाये। इसलिए Maharana Pratap ने छापामार रणनीति का प्रयोग किया।
प्रताप ने भीलो के साथ मिलकर पहाड़ियों से छिपकर मुग़ल सैनिको पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और बड़े पैमाने पर उनको उनको नुकसान पहुंचना शुरू कर दिया इससे मुग़ल सैनिक पीछे हटने लगे और उनका मनोबल टूटने लगा था। महाराणा प्रताप को अच्छी तरह से पता था की अकबर की सेना का मुकाबला वो ज्यादा दिन नहीं कर सकते.
लेकिन वो मुग़ल सेना को चैन से भी नहीं रहने देना चाहते थे। इसलिए छापामार प्रणाली का सहारा लिया। और महाराणा प्रताप उन पहाड़ियों और आस पास के क्षेत्र से अच्छी तरह से वाकिफ थे इसलिए ये तरीका भी काफी सफल हुआ उनके लिए। महाराणा प्रताप जंगलो में रहने लगे थे वही घासफूस की रोटियां तक खाई है। और भीलो के साथ उनके अच्छे सम्बन्ध थे
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दिवेर-छापली का युुद्ध
दिवेर राजस्थान के मेवाड़ के पहाड़ी इलाके में सिथत है और कुम्भलगढ़ पहाड़ियों के बीच में बसा हुआ है। दिवेर में एक महत्वपूर्ण युद्ध लड़ा गया था। जो की महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह के बीच लड़ा गया था और इसी युद्ध में महाराणा प्रताप को उनका राज्य वापस मिला था।इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन भी कहा जाता है। ये एक लम्बा युद्ध चला था।
दिवेर के क्षेत्र
पहले दिवेर के क्षेत्र में गुजरो का आधिपत्य था। और इसी कारन इस क्षेत्र को मेर भी कहा गया है लेकिन मध्यकाल में राजपूतो का यहाँ प्रभाव ज्यादा हो गया और उन्होंने अपनी बस्तिया यहाँ पर बसा ली थी जो चिक्ली के पहाड़ी के क्षेत्र में आज भी रहते है। दिवेर एक समर्द्ध क्षेत्र था। यहाँ पानी की कोई कमी नहीं थी और जमीं भी कृषि कार्य हेतु उत्तम थी। और सुरक्षा की दृष्टि से भी ये काफी महत्वपूर्ण था कहा जाता है की जब मुग़ल बादशाह ने वहा के कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था तब दिवेर को रक्षा स्थल के रूप में प्रयोग किया गया था।
दिवेर मुग़ल सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण था उसकी बहुत सी चौकिया यहाँ पर बानी हुई थी और अकबर इन चौकियों में रसद आपूर्ति में व्यस्त था तब महाराणा प्रताप ने दिवेर पर कब्ज़ा ज़माने की तयारी शुरू कर दी थी। मुग़ल सेना की एक बड़ी टुकड़ी दिवेर में मौजूद थी वहा पर घुड़सवार और हथीदल मौजूद थे।
छप्पन की पहाड़ियों का युद्ध
वही दूसरी और Maharana Pratap छप्पन की पहाड़ियों बसतिया बसाने में लगे हुए थे और उनके की इस योजना ने छप्पन के आसपास और मेवाड़ क्षेत्र के आसपास मुगलो को कमजोर कर दिया था। इसके बाद मुगलो और महाराणा प्रताप का सीधा युद्ध हुआ मेवाड़ के आसपास और छप्पन के पास की मुग़ल चौकियों में रसद समय पर नहीं पहुंचने पर वहा पर मुगलो के लिए ज्यादा समय तक पकड़ बनाना संभव नहीं रहा और महाराणा प्रताप ने आसपास के क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था।
मालवा और गुजरात
इसके आलावा प्रताप ने मालवा और गुजरात की और अपनी सेना भेजनी शुरू कर दी थी और आसपास के मुग़ल चौकियों और उनके कब्जे वाले क्षेत्रों पर हमला करना शुरू क्र दिया था। वही दूसरी और भामाशाह ने मालवा पर चढ़ाई कर दी और जुर्माने सवरूप वहा के शासक से असरफियाँ लेकर महाराणा प्रताप को भेट कर दी। शहबाजखां के जाने के बाद महाराणा प्रताप ने कुम्भल गढ़ में मुग़ल चौकियों पर अपना अधिकार जमा लिया और अकबर के लिए ये एक सन्देश भी था की दिवेर पर अब उसका कब्ज़ा जयादा दिनों तक नहीं रहने वाला था। इसके बाद महाराणा प्रताप ने अपनी सेना को और मजबूत किया और विस्तार किया और उनके लिए रसद की आपूर्ति की और नए हथियार और धन की आपूर्ति की
इसके बाद प्रताप ने दिवेर के किले पर चढ़ाई कर दी जिससे घबराकर मुग़ल सेना भाग खड़ी हुई और मुग़ल सेनापति सुल्तानखा वही पर पकड़ में आ गया और अमर सिंह ने भाले से ऐसा प्रहार किया की उसके प्राण पखेरू उसके घोड़े समेत उड़ गए। और इसी तरह ही महाराणा प्रताप ने बहलोल खान को भी घोड़े समेत मार दिया। और इस युद्ध में मेवाड़ की विजय हुई।
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महाराणा प्रताप की सफलताएं
महाराणा प्रताप दिवेर की जित के बाद आगे बढ़ते रहे और बिहार गुजरात उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों पर हमला करते रहे और उन क्षेत्रों में विद्रोह होने लगे थे। मेवाड़ के शासक एक के बाद एक क्षेत्रों पर कब्ज़ा करते रहे ]और दूसरी और अकबर हो रहे विद्रोह को दबाने में लगा रहा और इसका फायदा माहाराणा प्रताप ने उठाया और बहुत क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद जब महाराणा प्रताप राजा बने थे तब उनके अधिकार क्षेत्र में जितने राज्य थे वो सभी उन्होंने वापस पा लिए थे। और उनकी सत्ता फिर से वापस आ गई थी। और मेवाड़ को मुक्त करने महाराणा प्रताप सफल रहे। इसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य पर ध्यान देने में व्यस्त हो गए
How Maharana Pratap Died
इसके कुछ वर्षो बाद महाराणा प्रताप का देहांत हो गया। उनका देहांत मेवाड़ की राजधानी चावंड में हुआ था। अकबर बादशाह महाराणा प्रताप के डर से मेवाड़ की तरह मुँह नहीं किया और अपनी राजधानी को लाहौर ले गया और जब उसे पता चला की महाराणा प्रताप का देहांत हो गया है तो वो इसके बाद अपनी राजधानी को वापस आगरा लेकर आया था।
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महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर क्या बोला
- पूरी जिंदगी Maharana Pratap के लिए अकबर सबसे बड़ा शत्रु था
- और उनके बीच कोई व्यक्तिगत लड़ाई नहीं थी
- सिर्फ राज्य और अधिकार और मन सम्मान की लड़ाई थी
- अकबर एक क्रूर राज्य का विस्तार चाहता था
- जबकि महाराणा प्रताप इसके खिलाफ थे
- और वो अपनी मातृभूमि को मुग़ल के हवाले नहीं करना चाहते थे।
- जब अकबर को पता चला की महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है
- तो वह रोने लगा था उसकी आँखों में आंसू थे
- और वह बिलकुल मौन हो गया था।
- उसे इसकी खबर भी लाहौर में मिली थी
- तब उसके दरबार में एक दरबारी ने लिखा था की
अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी
गो आडा गवड़ाय जीको बहतो घुरवामी
नवरोजे न गयो न गो आसतां नवल्ली
न गो झरोखा हेठ जेठ दुनियाण दहल्ली
गहलोत राणा जीती गयो दसण मूंद रसणा डसी
निसा मूक भरिया नैण तो मृत शाह प्रतापसी
महाराणा प्रताप पर बने हुए कुछ टीवी सीरियल और फिल्मे
- Maharana Pratap पर दो हजार बारह में जोधा अकबर टीवी सीरियल आया था
- जिसको जी टीवी ने प्रसारित किया था
- और उसमे अनुराग शर्मा ने अभिनय किया था
- दो हजार तेरह में भारत का वीर पुत्र Maharana Pratap टीवी सीरियल आया था
- जिसका प्रशारण सोनी टीवी ने क्या था
- इसके बाद दो हजार सोलह में एबीपी न्यूज़ ने महाराणा प्रताप पर भारतवर्ष प्रसारित किया था
- जिसमे उनके जीवन की कहानी दिखाई गई थी
महाराणा प्रताप की कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया
- छापामार युद्ध प्रणाली का ईजाद महाराणा प्रताप ने नहीं
- बल्कि महाराणा उदय सिंह ने किया था
- और इसका प्रयोग महाराणा राज सिंह
- शिवाजी महाराज ने किया था
- महाराणा प्रताप कभी भी मुग़ल बादशाह से नहीं हारे थे
- बल्कि प्रताप ने अकबर को भागने पर मजबूर कर दिया था।
- बादशाह अकबर के दरबारी कवी होते हुए भी
- पृथ्वीराज राठौर महाराणाप्रताप के बहुत बड़े प्रशंसक थे।