दीपावली के अगले दिन Govardhan Puja का त्यौहार मनाया जाता है, जो मुख्यत: भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और आसपास के क्षेत्रों से संबंधित है। परंतु श्रीकृष्ण के भक्त जहां भी रहते हैं उनके रंग में रंग ही जाते हैं। Govardhan Puja में गोधन की पूजा की जाती है, जिसमें गाय का दूध, गोबर आदि शामिल है।
गोवर्धन पूजा क्यों मनाते है? – Why is Govardhan Puja celebrated?
गाय के गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनाई जाती है और फिर उसे पूरे विधान के साथ पूजा जाता है। ये तो हम सब जानते है की हर एक त्योहार से कोई न कोई पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, ऐसे में क्या आप जानते हैं कि दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे की कहानी क्या है। चलिए इस पोस्ट में पढ़ते गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है।
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श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा के ब्रज क्षेत्र में कृष्ण कन्हैया ने अनेकों लीलाएं की हैं। यह सभी लीलाएं उनके बालपन की हैं। इसलिए ब्रज को स्वर्ग का हिस्सा माना जाता है। इसे वृंदावन धाम और ब्रजधाम भी कहा जाता है। श्री कृष्ण की तमाम लीलाओं में गोवर्धन पूजा की लीला भी प्रमुख है।
गोवर्धन पूजा के पीछे का रहस्य – The secret behind Govardhan Puja
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब मवेशियों को चराते हुए भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत पहुंचे तो वहां लोग उत्सव मना रहे थें। कारण पूछने पर उन्हें जानकारी मिली कि वहां इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करें, इस हेतु पूजा हो रही है। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है।
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तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि देवराज इंद्र से अधिक ताकतवर ये पर्वत है। इसी के प्रभाव से यहां बारिश होती है और लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।
उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का एहसास हुआ।
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बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।
अन्नकूट के नाम से भी मनाया जाता है – Also known as Annakoot
- भगवान श्रीकृष्ण ने 7वें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा
- और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी।
- तभी से यह उत्सव ‘अन्नकूट’ के नाम से मनाया जाने लगा।
- कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाया जाता है
- जिन्हें ‘छप्पन भोग’ कहते हैं।
- अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है
- साथ ही दारिद्र्य का नाश होकर मनुष्य जीवनपर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है।
ऐसा माना जाता है कि यदि इस दिन कोई मनुष्य दुखी रहता है तो वह वर्षभर दुखी ही रहेगा इसलिए हर मनुष्य को इस दिन प्रसन्न रहकर भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय अन्नकूट उत्सव को भक्तिपूर्वक तथा आनंदपूर्वक मनाना चाहिए।