
Karva Chauth : इतिहास में किसी न किसी समय कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, जिनके उपलक्ष्य में ही हम आज व्रत और त्यौहार मनाये जाते हैं। हम होली मनाते हैं क्योंकि उस दिन कुछ महत्वपूर्ण बात हुयी थी। हम दिवाली मनाते हैं क्योंकि भूतकाल में उसी दिन कुछ अच्छा हुआ था। ऐसे ही करवा चौथ पति और पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला बेहद निष्ठापूर्ण व श्रद्धा भाव से उपवास रखने का त्यौहार है। करवा चौथ (Karva Chauth ) विशेष तौर पर नारियों का त्यौहार है। हिन्दू धर्म में नारी शक्ति को शक्ति का रूप माना जाता है।
karwa Chauth : क्यों मनाई जाती है करवा चौथ, इसके पीछे क्या कहानी है?:
कहते हैं कि नारी को यह वरदान है कि वो जिस भी कार्य या मनोकामना के लिए Karwa Chauth तप या व्रत करेगी तो उसका फल उसे जरूर मिलेगा। खासकर अपने पति के लिए यदि वे कुछ भी व्रत करती है तो वह सफल होगा। हर त्योहार के पीछे कोई कहानी है या फिर उसका कोई पौराणिक महत्व जरूर है। जैसे Karwa Chauth पूर्णिमा का चौथा दिन होता है जिसमें महिलाएं पूरा दिन अपने पति के कल्याण के लिए व्रत करतीं हैं और फिर उसके बाद उत्सव मनातीं हैं व अच्छा भोजन करतीं हैं। इस प्रथा के पीछे कुछ कुछ पौराणिक कहानियां जरूर मौजूद हैं। इस पोस्ट में हम जानेंगे की आखिर करवा चौथ का व्रत क्यों मनाया जाता है और इस व्रत Karwa Chauth को करने का तरीका क्या है।
Karwa Chauth क्यों मनाया जाता है ? Why is Karva Chauth celebrated?
करवा चौथ भारत के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक दिवसीय त्यौहार है। यह त्यौहार कार्तिक महीने में पूर्णिमा के चार दिन बाद मनाया जाता है। आपको बता दें की कई हिंदू त्योहारों की तरह, करवा चौथ चंद्र कैलेंडर पर आधारित है, जिसमें सभी खगोलीय स्थितियों, विशेष रूप से चंद्रमा की स्थितियों का वर्णन है, जो महत्वपूर्ण तिथियों की गणना के लिए एक मार्कर के रूप में उपयोग किया जाता है। यह त्यौहार कार्तिक मास के हिंदू चंद्र कैलेंडर महीने में पूर्णिमा के बाद चौथे दिन पड़ता है।
इस व्रत में जो करवा होता है वो एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन होता है और चौथ शब्द का एक और शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ है ‘चौथा’ यानि अंधेरे-पखवाड़े के चौथे दिन, या कृष्ण पक्ष में जो आता है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार कुवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती है और चाँद को देख कर व्रत खोलती है। यह दिन सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहते हैं इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा करने से विवाहित जीवन सदैव खुशहाल रहता है।
करवा चौथ व्रत की कथा | karva chauth vrat katha :
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो।
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Story
इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
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करवा चौथ Story
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है।
Story Of Karva choth
सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
करवा चौथ व्रत के दिन महिलाएं निर्जला रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर या होने वाले पति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत संपन्न होता है। इसकी पूजन विधि हम आपको निचे बताने जा रहे है।
Karwa Chauth व्रत की विधि – Karva chouth vrat Vidhi
- व्रत के दिन सुबह उठकर अपने घर की परंपरा के मुताबिक सरगी का ग्रहण करें।
- स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प करें।
- यह व्रत पूरा दिन निर्जल अर्थात बिना जलके ग्रहण किए किया जाता है।
- शाम के समय करवा चौथ की कथा पढें।
- जब चंद्रमा निकल जाए तो थाली में धूप, रोली, फूल दीपक, मिठाई आदि रख लें।
- थाली में श्रृंगार के सामग्री भी एकत्रित रखें।
- जब चंद्रमा निकल जाए उसके पश्चात चंद्रमा के दर्शन और पूजा आरंभ करें।
- सभी देवी देवताओं को तिलक लगाकर फूल और मिष्ठान आदि अर्पित करें।
- उसके बाद चंद्रमा को अरग दे और छलनी के ऊपर दीप रखकर चंद्रमा और अपने पति के चेहरे को देखें।
- अंत में अपने पति के हाथों से जल पीकर व्रत को पूरा करें
- और घर के सभी बड़ों से आशीर्वाद प्राप्त कर ले।
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